हिंदी Poetry वैसे दिल बोहोत साफ़ है उसका इन् हरकतों में कोई इशारा नहीं होता

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    उसे अच्छा नहीं लगता















    जिस  गुलदान  को  तुम  आज   अपना  केहते  हो , उसका फूल  एक  दिन  हमारा  भी  था ,
    वो  जो  अब  तुम  उसके  मुक्तार  हो  तो   सून  लो ,
    उसे अच्छा  नही लगता ,

    मेरी  जान  के  हक़दार  हो  तो  सुन  लो ,
    उसे  अच्छा  नहीं  लगता !

    वो   जो  अब  तुम  उसके  मुख्तार  हो  तो  सुन  लो ,
    उसे  अच्छा नहीं  लगता ,

    मेरी  जान  के  हक़दार  हो  तो  सुन  लो ,
    उसे  अच्छा  नहीं  लगता ,



    की  वो  जो  ज़ुल्फ़  बिखेरे  तो  बिख़िरी  ना  समझना ,
    अगर  माथे  पे  आ  जाए  तोह  बेफिक्रि  ना  समझना ,
    दरअसल  उसे  ऐसे  ही पसंद  है ,
    उसकी  आज़ादी , उसकी  खुली  ज़ुल्फ़ों  में  बंद  है !

    जानते  हो ,
    जानते  हो  वो  अगर  हज़ार  बार  जुल्फें  ना  सवारे  तोह  उसका   गुज़ारा  नहीं  होता ,



    वैसे  दिल  बोहोत  साफ़  है  उसका  इन्  हरकतों  में  कोई  इशारा  नहीं  होता .



    खुदा  के  वास्ते , खुदा  के  वास्ते  उसे  कभी  रोक  ना  देना ,
    उसकी  आज़ादी  से  उसी  कभी  टोक  ना  देना ,
    अब  मैं  नहीं   तुम  उसके  दिलदार  हो  तोह  सुन  लो ,
    उसे   अच्छा  नहीं  लगता.!!


    Zakir Khan












    मेरे कुछ सवाल है |


    मेरे कुछ सवाल है
    जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे
    क्यूंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
    इस लायक नहीं हो तुम

    मैं जानना चाहता हु
    क्या रकीब के साथ भी चलते हुए शाम को
    यूँ ही बेखयाली में उसके साथ भी हाथ टकरा जाता है क्या तुम्हारा ?

    क्या अपनी छोटी उंगलियों से
    उसका भी हाथ थाम लिए करती हो
    क्या वैसे ही
    जैसा मेरा थामा करती थी

    क्या बता दी सारी बचपन की कहानिया तुमने उसको
    जैसे मुझे रात रात भर बैठ कर सुनाई थी तुमने

    क्या तुमने बताया उसको
    की तीस के आगे की हिंदी की गिनती आती नहीं तुमको ?

    वो सारी तस्वीरें जो
    तुम्हारे पापा के साथ
    तुम्हारी बहन के साथ
    जिसमें तुम बडी प्यारी लगती थी
    क्या तुमने उसे भी दिखा दी तुमने

    ये कुछ सवाल है
    जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे
    क्यूंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
    इस लायक नहीं हो तुम

    मैं पूछना चाहता हु
    की क्या वो भी जब घर छोड़ ने आता है तुमको
    तो सीढ़ियों पर आखे मीच कर
    क्या मेरी ही तरह
    उसके सामने भी माथा आगे कर देती हो क्या तुम
    "वैसे ही जैसे मेरे सामने किया करती थी" ।।

    क्या सर्द रातो में बंद कमरों में
    क्या वो भी मेरी ही तरह
    तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उंगलियों से
    हर्फ़ दर हर्फ़ खुद का नाम लिखता है
    और तुम भी क्या
    अक्षर बा अक्षर पहचान ने की कोशिश करती हो क्या
    जैसे मेरे साथ किआ करती थी

    ये कुछ सवाल है
    जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे
    क्यूंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी
    बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम




    Zakir Khan








    यूँ तो भूले है हमे लोग कई,
    पहले भी बहुत से
    पर तुम जितना कोई उनमे से याद नहीं आया..




    बेवजह बेवफाओं को याद किया है,
    गलत लोगो पर बहुत बर्बाद किया है...




    अब कोई हक़ से हाथ पकड़कर महफ़िल में दोबारा नहीं बैठाता,
    सितारों के बीच से सूरज बनने के कुछ अपने ही नुकसान हुआ करते है...




    वो तितली की तरह आयी और ज़िन्दगी को बाग कर गयी
    मेरे जितने भी नापाक थे इरादे, उन्हें भी पाक कर गयी।





    अपने आप के भी पीछे खड़ा हूँ में,
    ज़िन्दगी , कितने धीरे चला हूँ मैं…
    और मुझे जगाने जो और भी हसीं होकर आते थे,
    उन् ख़्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूँ मैं….




    ये सब कुछ जो भूल गयी थी तुम,
    या शायद जान कर छोड़ा था तुमने,
    अपनी जान से भी ज्यादा,
    संभाल रखा है मैंने सब,
    जब आओग तो ले जाना..



    Zakir Khan








    मैं सून्य पर

    मैं शून्य पे सवार हूँ
    बेअदब सा मैं खुमार हूँ
    अब मुश्किलों से क्या डरूं
    मैं खुद कहर हज़ार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ

    उंच-नीच से परे
    मजाल आँख में भरे
    मैं लड़ रहा हूँ रात से
    मशाल हाथ में लिए
    न सूर्य मेरे साथ है
    तो क्या नयी ये बात है
    वो शाम होता ढल गया
    वो रात से था डर गया
    मैं जुगनुओं का यार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ

    भावनाएं मर चुकीं
    संवेदनाएं खत्म हैं
    अब दर्द से क्या डरूं
    ज़िन्दगी ही ज़ख्म है
    मैं बीच रह की मात हूँ
    बेजान-स्याह रात हूँ
    मैं काली का श्रृंगार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ

    हूँ राम का सा तेज मैं
    लंकापति सा ज्ञान हूँ
    किस की करूं आराधना
    सब से जो मैं महान हूँ
    ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ
    मैं जल-प्रवाह निहार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ
    मैं शून्य पे सवार हूँ


    Zakir Khan







    थोड़ी है 




    अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है


    ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है


     


    लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द्द में
    यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है


     


    मैं जानता हूँ की दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
    हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

    हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
    हमारे मुंह में तुम्हारी जुबां थोड़ी है

    जो आज साहिब-इ-मसनद है कल नहीं होंगे
    किराएदार है जाती मकान थोड़ी है
     

     सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
    किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है 

    Rahat Indori








     रोकने की कोशिश तो करना मुझे,

                     मै बताऊँगा कि तूफान क्या होता है। 

    तू तोड़ने की कोशिश करना मुझे,

                      मै बताऊँगा चट्टान क्या होता है। 

    तू बहा ले जाने की कोशिश करना मुझे

                      मै बताऊँगा किनारा क्या होता है। 










    फर्माइश 



    जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,


    बस इतनी से फरमाइश है,


    अब तस्वीर से नहीं,

    तफ्सील से मलने क ख्वाइश है..


    हम दोनों में बस इतना सा फर्क है, 


    उसके सब “लेकिन” मेरे नाम से शुरू होते है


    और मेरे सारे “काश” उस पर आ कर रुकते है.. 


     

    Two Lines Quotes





    उसे मैं क्या, मेरा खुमार भी मिले तो बेरहमी से तोड़ देती है,


    वो ख्वाब में आती है मेरे, फिर आकर मुझे छोड़ देती है….


     


    तेरी बेवफाई के अंगारो में लिपटी रही हे रूह मेरी,


    मैं इस तरह आज न होता जो हो जाती तू मेरी..


    एक सांस से दहक जाता है शोला दिल का


    शायद हवाओ में फैली है खुशबू तेरी





    Kabira




    “जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नहीं
    सब अंधियाँरा मिट गया, जब दीपक देखया महीन”
    “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
    पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर”
    “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिला कोय
    जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोय”
    “गुरु गोविन्द दोहू खड़े, कागे लागू पाँय
    बलीहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय”
    “सब धरती कागज कारु, लेखनी सब वनराय
    सात समुन्द्र की मासी कारु, गुरुगुन लिखा ना जाय”
    “ऐसी वानी बोलिये, मन का आपा खोय
    औरन को शीतल करुँ, खुद भी शीतल होय”
    “निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
    बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुबव”
    “दुख में सिमरन सब करे, सुख में करे ना कोय
    जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय”
    “माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंधे मोहे
    एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौंधुगी तोहे”
    “चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय
    दो पातन के बीच में, साबुत बचा ना कोय”
    “मलिन आवत देख के, कलियाँ करे पुकार
    फूले फूले चुन लिये, काल हमारी बार”
    “काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
    पल में परलय होयेगी बहुरी करेगा कब”
    “पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय
    ढ़ाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय”
    “साईं इतना दीजीये, जा में कुटुम्ब समाय
    मैं भी भूखा ना रहूँ, साधू ना भूखा जाय”
    “लूट सके लूट ले, राम नाम की लूट
    पाछे पछताएगा, जब प्रान जाएँगे छुट”
    “माया मरी ना मन मरा, मर मर गये शरीर

    आशा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर”


    कबीर दास के दोहे
















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    Hemant Patel

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